लेखक: के.एस.कण्णन्
(BSc, MA (Sanskrit), MPhil, PhD)
हिन्दी अनुवाद : अर्चना वागीश
(के जवाब मे : lekhana@ayvm.in)
धनुर विद्या के शिक्षण के दौरान पेड़ पर विराजमान एक चील की ओर सङ्केत कर, द्रोणाचार्यजी ने कहा "मेरे आदेश पर चील की गर्दन काट दो" | पहले युधिष्ठिर की बारी थी | "युधिष्ठिर, लक्ष्य लागाओ, मेरी बात पूरी होते ही बाण चलाओ" यह था द्रोणाचार्यजी का आदेश | युधिष्ठिर ने धनुष और बाण को सज्जित किया |
उस समय द्रोणाचार्यजी ने पछा – "क्या तुम्हे पेड़ की नोक पर स्थित चील दिखाई दे रहा है?" युधिष्ठिर ने उत्तर दिया "हाँ मुझे चील दिखाई दे रहा हैं | तुरन्त द्रोणाचार्यजी ने पूछा "क्या तुम्हे इस वृक्ष और मैं दोनों ही दिखाई दे रहे हैं?" जिसके उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा "हाँ मुझे वृक्ष,आप, वह चील और मेरे भाइ, सभी दिखाई दे रहे हैं" | फिर वहि प्रश्नोत्तर दोहराया गया | तत्पश्चात द्रोणाचार्यजी ने रुष्ट होकर युधिष्ठिर से दूर हटने को कहा – "तुमसे यह लक्ष्य नहीं लगाया जाएगा" |
तब दुर्योधन की बारी आयी और उनके बाद उनके भाइयों की | सारे भाइयों ने समान उत्तर दिए कि उन्हें सभी दिखाई दे रहे हैं | भीम और उनके भाइयों का भी यही उत्तर था |
तत्पश्चात् अर्जुन की बारी आयी | द्रोणाचार्य के उसी प्रश्न के उत्तर में अर्जुन ने कहा "मुझे केवल वह चील दिखायी दे रही है | मुझे वह पेड़ या आप दिखायी नहीं आ रहे हैं" | "तुम्हें पक्षी तो दिखाई दे रही ना?" द्रोणाचार्यजी के इस प्रश्न के उत्तर में, अर्जुन बोले कि उन्हें केवल और केवल पक्षी का सिर ही दिखायी पड रहा है ना की चील का शरीर | रोमाञ्चित होते हुए द्रोणाचार्यजी ने अर्जुन को बाण चलाने का आदेश दिया | पक्षी का सिर नीचे आ गिरा | द्रोणाचार्यजी पुलकित हुये |
किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए एकाग्रता की आवश्यकता है | मन केवल लक्ष्य पर ही लगाना चाहिए | इधर उधर भटक्ते हुऎ मन को एकाग्रता कैसे मिलेगी? {यह बात आज की पीड़ी के विद्यार्थियों पर भी लागू होती है | इन्टरनेट में आने वाले व्यर्थ की वस्तुओं को देखते रहे तो एकाग्र कैसे रख पाएंगे?} आध्यात्म जीवन में भी एकाग्रता और जाग्रता आवश्यक है | सावधानी से ब्रह्म लक्ष्य को पाना है – यही तो उपनिषद् का उपदॆश है |
अन्त में एक बात – "एक बैठे हुए पक्षी को मार दिया गया!" ऐसे सन्ताप ना करें | वो पक्षी शिल्पी के द्वारा निर्मित कृत्रिम पक्षी था |