लेखक् : श्रीराम चक्रवर्ति
हिन्दी अनुवाद: अर्चना वागीश
(के जवाब मे : lekhana@ayvm.in)
काल सृष्टि का एक ऐसा नियम हैं जिससे प्रकृति के सभी वस्तु और जीव प्रभावित हैं | समय हम सब के लिए बहुत ही अमूल्य द्रव्य हैं, समय हमारे पास जितना भी हो वह कम ही लगता हैं - ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं हैं | दुनिया के सभी व्यापार और सभी व्यवहार काल के अवलंबन करते हुए स्वाभाविक रूप से काल की परिक्रमा में व्यवस्थित हैं | सूर्योदय होते ही पक्षियों के चहकने की आवाज सुन पड़ती हैं, प्राणियों और पक्षियों की संचार साथ में प्रकृति में उल्हास को हम देख सकते हैं | जैसे ही दिन समाप्त होता है सारे गतिविधियां धीमी होकर दिन के अंत में एक तरह की स्तब्धता और शांतियुत वातावरण का अनुभव करसकते हैं | बढ़ते और घटते हुए चंद्र के उदय-अस्त के अनुसार समुद्र की लहरें प्रफुल होती हैं और पीछे हटती हैं | पक्ष मास बीतकर ऋतुवों का बदलना, वसंत काल के दौरान पौधे और पेड़ में अंकुर उभरना, बारिश के मौसम में नदियों का भरना और प्रवाहित होना , शरद ऋतू में धान्य समृद्धि, शिशिर ऋतू में पेड़ के फूलों और पत्तियों का सूखना, हर बरस हम देख रहे हैं | जिस ऋतु में आहार भरपूर प्राप्त होता हैं उस ऋतु में प्राणी और पक्षियां बच्चे पैदा करते हैं | बारिश आने के उपरान्त मेंढक आपस में चर्चा करते हैं, मोर अपने पंख खोलते हैं |
मनुष्य भी प्रकृति के बदलावों को नज़र में रखते हुए हमारा लक्ष्य के अनुसार हमारे जीवन शैली को रचाया हैं| घड़ी का समय के अनुसार विद्याभ्यास, वृत्ति, निद्रा एवं दैनिक गतिविधियां को समायोजित किया हैं | इसके अलावा वेश भूषण, आहारों एवं विहारों, प्रथाओं और व्यवहारों की व्यवस्था समय की अनुसार किये गए हैं | वर्षा बादल सर्दी गर्मी जैसे मौसम किसानों के कामकाज को निर्धारित करते हैं | समुद्र की ओर प्रस्थान करने वाले नाविक, हिमालय की ऊंचाइयों को चढ़ने वाले पर्वतारोही, मौसम को नज़र में रखते हुए प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए संकेतों पर ध्यान देते ही रहना चाहिए |
परन्तु आज जिस विशेष लक्ष्य का ज्ञान हम्हे नहीं हैं उस ज्ञान को हमारे संस्कृति के रचेता ऋषि और महर्ऋषि जानते थे | वे इन्द्रियों के तुष्टि के साथ आत्म-तुष्टि भी चाहते थे | (वे) तपस्या के द्वारां भीतर मनोवृत्ति से प्रकट हुए लहरों पर काबू पाकर, आंतरिक मेरु पर्वत चढ़कर, आनंद सागर में डूबने का उन्हें शौक था | इस आरोहण के लिए उपयुक्त समय संपूर्ण रूप से चुनते थे | ऐसे विशेष काल को हम पर्व दिन के नाम से आज जानते हैं | वैसे ही नित्य प्रातः और सायं संध्याकाल भी पर्व काल हॊते हैं | पक्ष-मास, नक्षत्र, तिथि जैसे संजोग काल
को त्यौहार और उत्सव के रूप में आचरण के लिए लाया गया | मकर संक्रांति, दीपावली, गणेश चतुर्थी जैसे त्यौहार जाने माने ही हैं | श्रीरंगमहागुरु ने याद दिलाया करते थे की आत्म साधन के लिए ग्रहण का समय अत्यंत विशेष पर्व काल हैं | सूर्य चंद्र और नक्षत्रों के नियामक जो काल पुरुष हैं, उन्हें कृतज्ञता से याद करते हुए, उनका प्रसाद ग्रहण करने की समय ही पर्व काल जैसा हैं | श्रीरंगमहागुरु याद दिलाया करते थे की आत्म साधन के लिए ये सभी पर्व काल बहुत ही पोषणीय हैं | इन पर्व कालों में ऋषियों ने जो महिमा को देखा और जाना हैं, उस महिमा को समझकर, ऐसे समयों को हमारे सांसारिक तथा पारमारथिक भलाई के लिए उपयोग करके हमारे जीवन को सार्थक बनाये |
सूचन : इस लेख का कन्नड़ संस्करण AYVM ब्लॉग पर देखा जा सकता है I