Monday, October 19, 2020

देवकी परमानंदं.......(devakee paramaanandan.......)

लॆखक: सुब्रह्मण्य सॊमयाजि
हिन्दी अनुवाद: अर्चना वागीश
(के जवाब मे :  lekhana@ayvm.in)
        


श्रीकृष्ण के जन्म का शुभ समय था | कंस के कारागृह में जगमगाता हुआ रौशनी प्रकट हुयी | वसुदेव और देवकी के समक्ष भगवन् श्री कृष्ण पूरे वैभव के साथ जन्म लिए | श्रीमद् भागवत के अनुसार वसुदेव ने उस अद्भुत बालक का दर्शन इस प्रकार किया- उन्होंने कमल जैसे नयन को देखा, जो अपने चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुए थे | अपने छाती पर श्रीवत्स चिह्न चमक रहा था | गला प्रकाशमान कौस्तुभ मणि से सुशोभित था | दीप्तिमान पीताम्बर से बालक का श्याम वर्ण शरीर लिपटा हुआ था |  उसके मुकुट हीरों रत्नों से सजा हुआ था | कर्ण कुण्डल से प्रकाशित उसके केश सूर्य किरणों की भांति रौशनी फैला रहे थे | सोने की मेखला कमर से बंधा हुआ था | भुजाओं सोने के बाजूबंद से और पग पर घुँघरू अलंकृत थे |

देवकी ने भी वसुदेव के साथ दिव्य बालक का दर्शन किया | वसुदेव द्वारा देखा गया वैभव अपने समक्ष रहकर भी, देवकी ने उस बालक का वर्णन इस प्रकार किया- "हे भगवान्! जिस दिव्य रूप का वर्णन योगियों करते हैं, उसी अव्यक्त रूप को मैं देख रही हूँ, जो सृष्टि का कारण हैं, ब्रह्मवस्तु, गुण और दोष रहित, संपूर्ण निर्गुण, अवैयक्तिक और परम सत, आप सच में विष्णु ही हैं|"

श्री रंगमहागुरु ने दोनों वर्णन का बहुत सुन्दर तरीके से तुलना किया हैं – "वसुदेव ने भगवान की बाहरी रूप का अनुभव किया | हालांकि तपस से परिपक्व हुयी नज़र से देवकी ने भगवान का दिव्य मंगल रूप का दर्शन किया | इसीलिए भगवन कृष्ण के विषय में कहा जाता हैं - " देवकी परमानंदं कृष्णम्  वंदे जगतगुरुम्" | देवकी ने अंतरंग में दिव्य ज्योति का दर्शन किया और उस अनुभव का अनायास वर्णन किया | हमारे देश की माताओं को भी इस प्रकार अंतरंग आनंद का आभास होना चाहिए |" वसुदेव का अनुभव भी प्रशंसनीय हैं | ऐसा अनुभव सामान्य जनों को दुर्लभ हैं | परन्तु देवकी को जिस तरह आंतरिक ज्योति का दर्शन और अनुभव हुआ वही तो परम लक्ष्य हैं- इसे भुलाया नहीं जा सकता | महर्षियों का कहना हैं की हर वस्तु का तीन रूप होते हैं- स्थूल, सूक्ष्म और परा | हमे सिर्फ स्थूल रूप पर ही ध्यान जाता हैं | सामने स्थित एक वृक्ष को देखते हैं | वृक्ष को जड़ धरती के भीतर संभालते हैं | जड़ को जो चैतन्य देती हैं उसे सिर्फ कृषक महसूस कर सकता हैं | स्थूल रूप को सूक्ष्म और परा रूप संभालते हैं - हमें यह नहीं भूलना चाहिए | इस प्रकार श्री कृष्ण के स्थूल रूप के पीछे छुपे हुए सूक्ष्म और परा रूपों का ज्ञान अगर हमें प्राप्त हो जाये तब हमारा जीवन सफल हो जाएगा | इसी को देवकी देवी ने अपनी भक्ति, तपस और साधना से प्राप्त किया हैं, वह हमारे लिए आदर्श बनती हैं |

सूचन : इस लेख का  अंग्रेज़ी  संस्करण AYVM ब्लॉग पर देखा जा सकता है |