लेखक – डा० हर्षा सिंहा
हिन्दी अनुवाद – पूजा धवन
वह कला जो मन को - चित्त को - आकर्षित करती है – उसॆ चित्र कला कहतॆ हैं - चित्रण की कला । जब एक महान आत्मा एक सुंदर चित्र को देखती है, तो पर्यावरण की सुंदरता से आकर्षित मन चित्रण की परिस्थितियों का आनंद लेता है8+। क्योंकि चित्रण (चित्र) एक व्यक्ति के मन को विषय के प्रति आकर्षित करते हैं और एक स्वाद (रस) उत्पन्न करते हैं और उसे आनन्दित करते हैं, उन्हें चित्र (कला) कहा जाता है। मूर्तिकला यां शिल्पकला भी इस तत्व को परिपूर्ण रूप से सिद्ध करती है जिस कारण से विशेषज्ञों द्वारा मूर्तिकला को भी चित्र कला कहा जाता है।
चित्र का विषय कलाकार पर निर्भर है। इंद्रियां, मन और उनकी मनोदशा कलाकार के मन पर एक छाप सृजित करती है और उसका कूंचा इन मानसिक चित्रों को दर्शाता है । जो पर्यवेक्षक का मन भी चित्र वीक्षण से चित्रकार के हृदय या मनस्थिति की ओर ले जाता है । इस रहस्य को जानने के बाद, भारत के ऋषियों ने चित्रों और मूर्तियों के माध्यम से प्रकृति, देवताओं और गन्दर्वों के रहस्यों को प्रकाशित किया है जो उन्होंने ध्यान अवस्था में अनुभव किए । इन चित्रों और मूर्तियों को निरन्तर देखने से, तपस्या की भांति, धीरे-धीरॆ परन्तु निश्चित रूप से हमारा मन ऋषियों की तपस्थिति का अनुभव करता है और उनके द्वारा अनुभव किए गए आनन्द का आभास करता है , अंततः उसे सृष्टि के मूल में प्रभु के निवास में ले जाता है - उनके असीम (आनन्द) और उनके रस (अमृत) में । शिल्पा (मूर्तिकला) का अर्थ ही समाधि है-अनन्त में विलय। आसन, दृष्टिकोण, दृष्टि, सौंदर्य, भगवान की मूर्तियों की मुस्कुराहट और प्रतिरूप, मन को सुंदरता, परम के विलय और अनुभव की ओर प्रेरित करती है।
मन्दिरों में, मुख्य देवता की मूर्ति के अतिरिक्त, प्रकृति की सुंदरता, जानवरों, पक्षियों और यहां तक कि सांसारिक जीवन का चित्रण करते हुए अन्य मूर्तियाँ, चित्र भी हो सकते हैं। यह वैसा ही है जब हम जोग फॉल तक की यात्रा करते हैं, तो क्या हम हरे जंगलों की प्राकृतिक सुंदरता, रास्ते में भोजन और यात्रा का आनंद नहीं लेते हैं? फॉल्स को अचंभित करने के अतिरिक्त, हम अन्य स्मृतियों में भी रहस्योद्घाटन करते हैं। इसी तरह, यद्यपि हम अभयारण्य के गर्भगृह के अन्दर देवता की मूर्ति का आनन्द लेते हैं, हम रास्ते में उनकी रचना की भव्यता के किरमिच का भी आनन्द लेते हैं। हम उनकी विभूति (विशालता) से प्रभावित हैं। एक महान आत्मा प्रकृति की सुखदायक जंगल की गोद, पहाड़ों और पहाड़ियों में उसकी उदात्तता, उसके महासागरों के तट पर उसकी विशालता और गहरे नीले तारों वाले आकाश में उसकी चमक की हरियाली का आनन्द लेती है। जैसा कि श्री श्री रंगा महागुरु द्वारा बताया गया है, "क्योंकि भगवान की रचना की पहेली उनकी छाप और हस्ताक्षर को वहन करती है, उन्हें देखते हुए, मन को उसके प्रति, धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से प्रेरित करता है। मन मौन की गहराई में गोता लगाता हुआ अल्प मात्रा में ही किन्तु परमानन्द का अनुभव करता है।" इस दृष्टिकोण से, उनकी पूरी रचना उनका चित्र, उनकी मूर्तिकला है। वह, प्रकाशमयि भगवान, सच्चे कलाकार हैं और हर दूसरे कलाकार के लिए आदर्श हैं। इस सार्वभौमिक कलाकार की कला, जिसने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया है, हमारी भूमि भारत की सभी कलाओं का आधार है।
सूचन : इस लेख का कन्नड़ संस्करण AYVM ब्लॉग पर देखा जा सकता है |